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तीर्थों का सामान्य परिचय और यात्रा
वही जिह्वा पवित्र हैं, जिससे जिनेन्द्र का नाम लिया जावे और पगों को पाने की सार्थकता तभी है जब पुण्यशाली तीर्थो की यात्रा-वन्दना की जावे। आइये पाठक, हम लोग दिल्ली से अपनी परोक्ष तीर्थ यात्रा प्रारम्भ करें और मार्ग के दर्शनीय स्थानों का परिचय प्राप्त करें।
दिल्ली दिल्ली भारत की राजधानी बाज नहीं बहुत पुराने जमाने से है। पाण्डवों के जमाने में वह इन्द्रप्रस्थ कहलाती थी। इसका नाम योगिनीपुर भी रहा । सम्राट समुद्रगुप्त ने लोहे की एक लाट इन्द्र प्रस्थ में गढ़वांई थी। तोमर वंशी राजा अनंगपाल ने वह लाट पुनः मजबूत गढ़वाने के विचार से उखड़वाई क्योकि किसी ज्योतिषी 'ने उससे कहा था कि यह लाट जितनी स्थिर होगी, उतना आपका राज्य स्थिर होगा। उखड़वाने पर देखा कि उसके किनारे पर खून लगा है । राजा ने लोहे की वह किल्ली पुनः गढ़वादी। किन्तु वह कीली कुछ ढीली रह गई। जिससे लोग उसे ढीली या दिल्ली कहने लगे। ढिल्ली ही बदलते बदलते दिल्ली बन गई। शाहजहाँ ने उसका नाम शाहजहानाबाद रक्खा। बोलचाल में सब लोग उसे दिल्ली कहते है । जैनधर्म का उससे घनिष्ट सम्बन्ध रहा है।
कुतुब की लाट के पास पड़े हुए जैन मन्दिर और मूर्तियों के खण्डहर उसके प्राचीन सम्बन्ध की साक्षी दे रहे है। कुतुबुद्दीन ने २७ हिन्दू और जैन मन्दिरो को तोड़ कर यहां मसजिद बनाई थी। इसके खंभों और छतों में अब भी जन मतियाँ दीख पड़ती हैं। मुसलमान बादशाहो के जमाने में भी जन धर्म दिल्ली में उन्नति