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Purna
भीतर का चक्न
पौ फटने से पहले
मेरी नाय के कपड़ |
बहेलिया के बीच
कोई भी दिन
गरा. कायल और तन्दूर
भारतीय ज्ञानपीठ की एक और नयी पहल
छह युवा कथाकारों के
पहले कथा-संग्रह का सेट भीतर का वक्त : अल्पना मिश्र अल्पना मिश्र की कहानियाँ जिस मितव्ययिता और सहज सादगी से सम्बन्धों और स्थितियों की बाहरी दुनिया से 'भीतर' को देखती हैं वह आज के स्त्री मन में हो रहे बड़े परिवर्तन की ओर संकेत करती हैं।
-कृष्णा सोबती (प्रख्यात कथाकार और विचारक) पौ फटने से पहले : अरुण कुमार असफल' लेखक का विषयवस्तु सम्बन्धी वैविध्य और अनुभव की विस्तीर्णता--और उन अनुभवों को सहज कल्पनाशीलता के सहारे अपनी खास शैली में कहानी बना देने की क्षमता विस्मयजनक रूप से एक नयेपन और ताजगी का एहसास कराती है।...
- श्रीलाल शुक्ल (प्रतिष्ठित व्यंग्यकार और उपन्यासकार) मेरी नाप के कपड़े : कविता कविता की कहानियों को पढ़ना एक युवा स्त्री के मानसिक भूगोल के अनुसंधान और घनिष्ठ अपरिचय को जानने के रोमांच से गुजरना है। कविता की कहानियों को पढ़ना 'नयी लड़की' को जानना है।
-राजेन्द्र यादव (महत्वपूर्ण लेखक, सम्पादक और चिन्तक) बहेलियों के बीच : श्यामल बिहारी महतो ये कहानियाँ श्रमिकों के जद्दोजहद-भरे जीवन पर आधारित हैं। लेखक ने जिन अभावों और मुश्किलों में अपना जीवन गुजारा है और अपने आसपास जो देखा-सुना है, उसे अपनी कहानियों में शब्दशः लिखने की कोशिश की है। संवेदनात्मक कथातत्व इन्हें गहराई प्रदान करता है।
-कमलेश्वर (प्रख्यात कथाकार, लेखक और सम्पादक) कोई भी दिन : पंखुरी सिन्हा पंखुरी सिन्हा की कहानियों को बहुत कुछ कहना चाहने की इच्छा की कहानियाँ कहा जा सकता है। कथाकार परिवेश को, परिवर्तन को, विघटन को, निजी-अनिजी, अमूर्त, अभौतिक, उदात्त सभी को पहचानती-रेखांकित करती हुई अपनी कथावस्तु के सन्दर्भ से कहीं ज्यादा कहना चाहती है।...
-राजी सेठ (प्रख्यात कथाकार, लेखिका और चिन्तक) राजा, कोयल और तन्दूर : पराग कुमार मांदले लेखक का रचना-संसार सिमटा हुआ न होकर स्वयं को विस्तार देता अपनी गहन रचना-दृष्टि का उत्स अन्वेषित करता है, जो उसकी अभिव्यक्ति की निष्ठा के प्रति हमें आश्वस्त ही नहीं करता, उसकी अप्रतिम सम्भावनाओं को भी रेखांकित करता है।
-चित्रा मुद्गल (समर्थ लेखिका तथा विचारक) (प्रत्येक सजिल्द 95 रु. पेपरबैक 50 रु.)