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पहले तो तीर्थ स्थान स्वयं पवित्र हैं। उस पर वहां पातमसंस्कारों को जागृत करने वाली बोलती सी जिन प्रतिमायें होती है। जिनके दर्शन से तीर्थयात्री को महती निराकुलता का अनुभव होता है। वह साक्षात सुखका अनुभव करता है। अब पाठक समझ सकते हैं कि तीर्थ क्या है।
+'सपरा जगम देहा दंसणणाणेण सुद्धचरणाणं । णिग्गंथवीयराया जिणमग्गे एरिसा पडिमा ।'
___ -षटपाहुडे श्री कुन्दकुन्दाचार्यः भावार्थ :--स्व प्रात्मा से भिन्न देह जो दर्शनज्ञान व निर्मल चारित्र से निग्रन्थस्वरूप है और वीतराग है वह जंगम प्रतिमा जिन मार्ग में मान्य है। व्यवहार में वैसी ही प्रतिमा पाषाणादि की होती हैं।
प्रश्नावली
१. तीर्थ शब्द का क्या अर्थ है ? साधारण बोलचाल में तीर्थ
किसे कहते हैं ? कुछ उदाहारण देकर समझानों। २. तीर्थ क्षेत्र कैसे बनते हैं ? ३. 'सिद्धक्षेत्रों', या 'निर्वाण क्षेत्र' और अतिशय क्षेत्र' के बारे में
संक्षेप में लिखो। ४. तीर्थक्षेत्रों पर तीर्थंकरों अथवा महापुरुषों की मूर्तियां या
उनके चरण चिन्ह क्यों बनाये जाते हैं ? उनका क्या उपयोग