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________________ [ १०२] ललितपुर यहां क्षेत्र की जैन धर्मशाला में ठहरे । यहाँ एक कोट के अन्दर पांच मंदिर बड़े रमणीक बने हुये हैं। उनमें अभिनन्दन नाथ की प्रतिमा बड़ी मनोज्ञ है । यहां भोयरे में भी मन्दिर है। यहां के क्षेत्रपाल के अतिशय बहुत प्रसिद्ध हैं। शहर में भी पंचायती प्राचीन मंदिर है । जिसमें हस्तलिखित ग्रन्थों का अच्छा संग्रह है।। पाठशाला भी है। यहां मोटर से चंदेरी जावे। चन्देरी ललितपुर से चंदेरी बीस मील दूर हैं । यहाँ तीन महामनोज्ञ मंदिर हैं। यहाँ एक मंदिर में अलग-अलग चौबीस तीर्थङ्करों की अतिशययुक्त प्रतिमायें विराजमान हैं। इन प्रतिमाओं की यह विशेषता है कि जिस तीर्थङ्कर के शरीर का जो वर्ण था वही वर्ण उनकी प्रतिमा का है ऐसी प्रतिमायें अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलती। इस चौबीसी को सं० १८६३ मे सवाई चौधरी फौजदार हिरदेसाह फतहसिंह के कामदार सभासिंह जी ने निर्माण कराया था। उसकी पत्नी का नाम कमला था । श्री हजारीलाल जी वकील के प्रयत्न से इस क्षेत्र का उद्धार हो रहा है। हजारों दर्शनीय प्रतिमायें संग्रहीत हैं और शास्त्रों का संग्रह भी किया गया है। यह स्थान अतिशय क्षेत्र रुप में प्रसिद्ध है। किले में भी जैन मूर्तियाँ १२वी १३वीं शताब्दी की हैं। यहाँ के मन्दिर में अच्छा शास्त्र भण्डार भी है। खन्दार जी चंदेरी से एक मील की दूरी पर खन्दारजी नामक पहाड़ी है। खन्दार नाम पड़ने का कारण यह है कि इस पहाड़ी की कन्दराओं ( गुफानों ) में पत्थर काटकर मूर्तियां बनाई गई हैं जिनका निर्माण काल तेरहवीं शताब्दी से सत्रहवीं शताब्दी तक
SR No.010323
Book TitleJain Tirth aur Unki Yatra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages135
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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