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भातकुली . अमरावती से भातकुली दस मील दूर है। यह अतिशय क्षेत्र केशरिया जी की तरह प्रभावशाली है। यहाँ ३ दि. जैन मन्दिर व दो चैत्यालय हैं। श्री ऋषभनाथ जी की प्रतिमा मनोज्ञ हैं। यहां से अमरावती और कामठी होकर रामटेक जावे ।
रामटेक - स्टेशन से डेढ़ मील के फासले पर जैन धर्मशाला है। शहर से एक मील दूर जंगल में अत्यन्त रमणीक मंदिरों का समूह है ! कुल दस मन्दिर हैं। उनमें दो मन्दिर दर्शनीय और भारी लागत के हैं, इनमें हाथी घोड़ा प्रादि की मूर्तियां बनी हुई हैं। इनमें एक मन्दिर में १८ फीट ऊँची कायोत्सर्ग पीले पाषाण की श्री शान्तिनाथ जी की प्रतिमा अति मनोज्ञ है। अन्य मंदिर प्रायः सं० १६०२ के बने हुये हैं । कहते हैं कि श्री अप्पा साहब भोंसला के राज़मंत्री वर्षमान सावजी श्रावक थे। एक दिन राजा रामटेक आये। उन्होंने रामचन्द्र जी के दर्शन करके भोजन किये, परन्तु मंत्री वर्धमान ने भोजन नही किए, क्योंकि तब तक उन्होंने देव दर्शन नही किये थे। इस पर राजा ने जैन मंदिर का पता लगवाया, तो जंगल के मध्य झाड़ियों से ढकी हुई एक तीर्थकर मूर्ति का पता चला। मंत्री जी ने दर्शन करके प्रानन्द मनाया और यहाँ पर कई मंदिर बनवाये । यहाँ पर श्री रामचन्द्र जी का शुभागमन हुआ था। यहाँ से विदवाड़ा होकर सिवनी जाये।
सिवनी सिवनी परवार जनियों का केन्द्र स्थान है। यहाँ २१ मंदिर तालाब के किनारे बने हुये हैं। यहाँ का चांदी का रथ दर्शनीय है। एक श्राविकाश्रम हैं। यहां से जबलपुर जावे।
बयपुर भी परवार जैनियों का प्रमुख केन्द्र है। यहां