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________________ संजय वेलट्ठिपुत्त और स्यावाद स्याद्वादके सम्बन्धमे भ्रान्तियाँ जैन दर्शनके स्याद्वाद सिद्धान्तको अभी भी विद्वान् ठीक तरहसे समझनेका प्रयत्न नही करते और धर्मकीर्ति एव शङ्कराचार्यकी तरह उसके बारेमें भ्रान्त उल्लेख अथवा कथन कर जाते हैं। प० बलदेव उपाध्यायकी भ्रान्ति काशी हिन्दू विश्वविद्यालयमें सस्कृत-पाली विभागके व्याख्याता प० बलदेव उपाध्यायने सन् १९४६ में 'बौद्ध-दर्शन' नामका एक ग्रन्थ हिन्दीमें लिखकर प्रकाशित किया है । इसमें उन्होने बुद्धके समकालीन मत-प्रवर्तकोके मतोको देते हुए सजय वेलठ्ठिपुत्तके अनिश्चिततावादको भी बौद्धोके 'दीघनिकाय' (हिन्दी अ०१० २२) ग्रन्थसे उपस्थित किया है और अन्तमें यह निष्कर्ष निकाला है कि "यह अनेकान्तवाद प्रतीत होता है । सम्भवत. ऐसे ही आधारपर महावीरका स्याद्वाद प्रतिष्ठित किया गया था।" राहुल सास्कृत्यायनका भ्रम इसी प्रकार दर्शन और हिन्दीके ख्यातिप्राप्त बौद्ध विद्वान् राहुल सास्कृत्यायन अपने 'दर्शन-दिग्दर्शन' में लिखते हैं "आधुनिक जैन-दर्शनका आधार 'स्याद्वाद' है, जो मालूम होता है सजय वेलठ्ठिपुत्तके चार अङ्गवाले अनेकान्तवादको (1) लेकर उसे सात अङ्गवाला किया गया है। सजयने तत्त्वो (परलोक, देवता) के बारेमें कुछ निश्चयात्मक रूपसे कहनेसे इन्कार करते हुए उस इन्कारको चार प्रकार कहा है १. है ?-नही कह सकता। २ नही है ?-नही कह सकता । ३ है भी नही भी नहीं कह सकता। ४ न है और न नही है-तही कह सकता । इसकी तुलना कीजिए जैनोके सात प्रकारके स्याद्वादसे१ है ?-हो सकता है (स्याद् अस्ति) २ नही है ?-नही भी हो सकता (स्यान्नास्ति) ३ है भी नही भी ?-है भी और नही भी हो सकता है (स्यादस्ति च नास्ति च) उक्त तीनो उत्तर क्या कहे जा सकते (= वक्तव्य) है ? इसका उत्तर जैन 'नहीं' में देते हैं४ स्याद् (हो सकता है) क्या यह कहा जा सकता (= वक्तव्य) है ?-नही, स्याद् अवक्तव्य है। ५ 'स्याद् अस्ति' क्या यह वक्तव्य है ? नही 'स्याद् अस्ति' अवक्तव्य है। ६ 'स्याद् नास्ति' क्या यह वक्तव्य है ? नही, 'स्याद् नास्ति' अवक्तव्य है । ७ 'स्याद् अस्ति च नास्ति च' क्या यह वक्तव्य है ? नही, 'स्याद् अस्ति च नास्ति च' अवक्तव्य है।' १ बौद्धदर्शन पृ० ४० । २. दर्शनदिग्दर्शन पृ० ४९६-९७ ।
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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