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________________ यह क्या कहते हैं। चातुर्मास बाद तो आपको दिल्ली चलना है। दिल्लीकी समाज और जैन अनाथाश्रम आपको लाने के लिये उत्सुक हैं । महाराज चुप रह गये। पर उनका सकेत उनकी सौम्य मुखाकृतिसे मुझे उनकी समाधिके अवसरपर आने के लिये ही था। महाराज की आज्ञा शिरोधार्य करते हुए चिन्ताके साथ कहा'महाराज, चरणोमें अवश्य उपस्थित होऊँगा।' उसी समय एक पत्र ला० सरदारीमलजी गोटेवालो और एक पत्र आश्रम-मत्री ला० रघुवीरसिंह कोठीवालोको लिखा और उसमें महाराजके चिन्ताजनक स्वास्थ्यका उल्लेख करते हुए वैद्यराज कन्हैयालाल जो आयुर्वेदाचार्य प्रधान चिकित्सक जैन औषधालय, देहलीको शीघ्र भेजनेके लिए प्रेरणा की। वैद्यजी महाराजके चरणोंमें पहुंच गये और उन्होने २२ दिन तक महाराजको पूरी वैयावृत्य की । ___ किन्तु हम जाते-जाते रह गये । हमलोग यही सोचते रहे कि महाराज अपनी असाधारण तप शक्तिके प्रभावसे अभी हमलोगोके मध्य में अवश्य रहेंगे । किन्तु जिनके चरण-सान्निध्यमें पिछले छह वर्षोंमे सैकडो बार आया, गया और स्वाध्याय कराया । उनके तपसे प्रभावित होकर उनका भक्त बना और मेरे ही परामर्शसे वर्णीजीके समागममें सम्मेदशिखर सिद्ध क्षेत्रपर जानेका उन्होने निश्चय किया । पर समाधिमरणके समय न पहुच सका। ऐसे महान तपस्वीको शत-शत वन्दन है।
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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