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________________ २ भगवान् महावीरकी २५००वी निर्वाण-शती सारे भारतवर्ष में व्यापक पैमानेपर मनायी जायगी। उसमें विद्वत्परिषद्के सदस्य व्यक्तिश योगदान करेंगे ही, परिषद् भी एक साथ अनेक स्थानोपर अथवा भिन्नभिन्न समयोंमें अनेक विश्वविद्यालयोमें सेमिनारो (सगोष्ठियों) का आयोजन करे। इन सेमिनारोमें जैन एव जैनेतर विद्वानो द्वारा जैन विद्याकी एक निर्णीत विषयावलिपर शोधपूर्ण निबन्ध-पाठ कराये जायें। इन सेमिनारोंका आज अपना महत्त्व है और उनमें विद्वान् रुचिपूर्वक भाग लेंगे। ३. आगामी तीन वर्षोंकी अवधिके लिए एक ग्रन्थ-प्रकाशनकी योजना बनायी जाय । इस योजनाके अन्तर्गत 'तीर्थकर महावीर और उनकी आचार्यपरम्परा' ग्रन्थका तो प्रकाशन हो ही, उसके अतिरिक्त तीन अप्रकाशित सस्कृत-प्राकृत-अपभ्रशके ग्रन्थो या भगवान् महावीर-सम्बन्धी नयी मौलिक रचनाओंका प्रकाशन किया जाय । यदि अगले तीन वर्षों में परिषद् ये तीन कार्य कर लेती है तो वह सस्कृतिकी एक बहुत बड़ी सेवा कही जावेगी। -३१४
SR No.010322
Book TitleJain Tattvagyan Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1983
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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