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कर्मवाद
भारतीय दार्शनिक चिन्तन में कर्मवाद का महत्त्वपूर्ण स्थान हैं । सुख, दुःख एवं अन्य प्रकार के सांसारिक वैचित्र्य के कारण की खोज करते हए भारतीय चिन्तकों ने कर्म-सिद्धान्त का अन्वेषण किया । जीव अनादि काल से कर्मवश हो विविध भवों में भ्रमण कर रहा है । जन्म-मरण का मूल कर्म है। जीव अपने शुभ एवं अगुभ कमों के साथ पर भव में जाता है। जो जैसा करता है वह बना ही फल पाता है। एक प्राणी दूसरे प्राणी के कर्मफल का अधिकारी नहीं होता। कर्मवाद किसी न किसी रूप में भारत की समस्त दार्शनिक एवं नैतिक विचारधारानों में विद्यमान है तथापि इसका जो सुविकसित रूप जैन परम्परा में उपलब्ध होता है वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता। कर्मवाद जैन विचारधारा एवं परम्परा का अविच्छेच अंग है ।