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नयवाद
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श्रुत के दो उपयोग होते हैं-सकलादेश और विकलादेश । सकलादेश को प्रमाण या स्याद्वाद कहते हैं। विकलादेश को नय कहते हैं । धर्मान्तर की अविवक्षा से एक धर्म का कथन, विकलादेश कहलाता है । स्याद्वाद या सकलादेश द्वारा सम्पूर्ण वस्तु का कथन होता है। नय अर्थात् विकलादेश द्वारा वस्तु के एक देश का कथन होता है । सकलादेश में वस्तु के समस्त धर्मो की विवक्षा होती है। विकलादेश में एक धर्म के अतिरिक्त अन्य धर्मो की विवक्षा नहीं होती । विकलादेश इसीलिए सम्यक् माना जाता है कि वह अपने विवक्षित धर्म के अतिरिक्त जितने भी धर्म हैं उनका प्रतिपेव नहीं करता, अपितु उन धर्मों के प्रति उसका उपेक्षाभाव होता है । शेष धर्मो से उसका कोई प्रयोजन नहीं होता । प्रयोजन के अभाव में वह उन धर्मों का न तो विधान करता है और न निषेध । सकलादेश और विकलादेश दोनों की दृष्टि में साकल्य और वैकल्य का अन्तर