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स्याद्वाद
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३-रत्नप्रभा पृथ्वी स्यात् अवक्तव्य है ।
यह कैसे ? १-आत्मा के आदेश से आत्मा है । २-~पर के आदेश से आत्मा नहीं है। ३-उभय के आदेश से प्रवक्तव्य है।
अन्य पृथ्वियों, देवलोकों और सिद्धशिला के विषय में भी यही बात कही गई है। परमाणु के विषय में पूछने पर भी यही उत्तर मिला। द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में महावीर ने इस प्रकार उत्तर दिया
१-द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है। २-द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है । ३--द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् अवक्तव्य है। ४~-द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और आत्मा नहीं है । ' ५.---द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है और प्रवक्तव्य है। ६-द्विप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है।
यह कैसे? १-द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है। २-पर के आदेश से आत्मा नहीं है। ३--उभय के आदेश से अवक्तव्य है। ४-~-एक अंश (देश) सद्भावपर्यायों से प्रादिष्ट है और दूसरा
अंश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, अतः द्विप्रदेशी स्कन्ध
अात्मा है और आत्मा नहीं है। ५-एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और एक देश
उभयपर्यायों से ग्रादिष्ट है, अतएव द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा
है और प्रवक्तव्य है। ६-एक देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट है और दूसरा देश
तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, अत: द्विप्रदेशी स्कन्ध आत्मा
नहीं है और प्रवक्तव्य है। त्रिप्रदेशी स्कन्ध के विषय में पूछने पर निम्न उत्तर मिला१-त्रिप्रदेशी स्कन्ध स्यात् आत्मा है। . . .