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जैन-दर्शन
निकष से सुवर्ण का, गन्ध से पुष्प का, रस से लवण का, आस्वाद से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का अनुमान गुण से गुणी का अनुमान है। ___सींग से भैंसे का, शिखा से कुक्कुट का, दांत से हाथी का, दाढ़ से वराह का, पिच्छ से मयूर का, खुर से घोड़े का, नख से व्याघ्र का, केश से चमरी गाय का, पूछ से बन्दर का, दो पैर से मनुष्य का, चार पैर से पशु का, बहुत पैर से गोजर आदि का, केसर से सिंह का, ककुभ से वृषभ का, वलयवाली भुजा से महिला का, परिकरबन्ध से योद्धा का, अधोवस्त्र-लँहगे से नारी का अनुमान अवयव से अवयवी का अनुमान है।
धूम से वन्हि का, बलाका से पानी का, अभ्रविकास से वृष्टि का, शीलसमाचार से कुलपुत्र का अनुमान आश्रित से आश्रय का अनुमान है।
ये पाँच भेद अपूर्ण मालूम होते हैं। कारण और कार्य को लेकर दो भेद कर दिए किन्तु गुण और गुणी, अवयव और अवयवी तथा आश्रित आश्रय के दो दो भेद नहीं किए। जब कारण से कार्य का अनुमान कर सकते हैं तो गुरगी से गुण, अवयवी से अवयव और आश्रय से आश्रित का अनुमान भी हो सकता है । सूत्रकार ने किस सिद्धान्त के आधार पर पाँच भेद किए, यह नहीं कहा जा सकता।
दृष्ट साधर्म्यवत्--इसके दो भेद हैं-सामान्य दृष्ट और विशेष दृष्ट । किसी एक वस्तु के दर्शन से सजातीय सभी वस्तुओं का ज्ञान करना अथवा जाति के ज्ञान से किसी विशेष पदार्थ का ज्ञान करना, सामान्यदृष्ट अनुमान है । एक पुरुष को देखकर पुरुषजातीय सभी व्यक्तियों का ज्ञान करना अथवा पुरुषजाति के ज्ञान से पुरुषविशेष का ज्ञान करना सामान्यदृष्ट अनुमान का दृष्टान है।
अनेक वस्तुओं में से किसी एक वस्तु को पृथक् करके उसका ज्ञान करना विशेषदृष्ट अनुमान है । अनेक पुरुषों में खड़े हुए विशेष पुरुष को पहचानना कि 'यह वही पुरुष है जिसे मैंने अमुक स्थान पर देखा था' विशेषदृष्ट दृष्टसाधर्म्यवत् अनुमान का उदाहरण है।
सामान्यदृष्ट उपमान के समान लगता है और विशेषदृष्ट प्रत्यभिज्ञान भिन्न प्रतीत नहीं होता।