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धानवाद र प्रमाणमास्य
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बहु का अर्थ अनेक और ग्रप का अर्थ एक है । अनेक वस्तुनों का ज्ञान बहुग्राही है | एक वस्तु का ज्ञान ग्रल्पग्राही है । अनेक प्रकार की वस्तुओं का ज्ञान बहुविग्राही है। एक ही प्रकार की वस्तु का ज्ञान पविग्राही है । वह और अल्प संख्या से सम्बन्धित हैं और बहुविध तथा अल्पविष प्रकार या जाति से सम्बन्धित हैं। शीघ्रतापूर्वक होने वाले अवग्रहादि ज्ञान, क्षिप्र कहलाते है । विलम्ब से होने वाले ज्ञान श्रक्षिप्र हैं । अनिश्चित का अर्थ हेतु के बिना होने वाला वस्तुज्ञान है । निश्चित का अर्थ पूर्वानुभूत किसी हेतु से होने वाला ज्ञान है । जो ग्रनिश्चित के स्थान पर ग्रनिःसृत और निश्चित के स्थान पर निःसृत का प्रयोग करते हैं उनके मनानुसार ग्रनिःसृत का अर्थ है असकलरूप से ग्राविर्भुत पुद्गलो का ग्रहण और निःसृत का अर्थ है सफलता श्राविर्भूत पुडुगलों का ग्रहण । ग्रसदिग्ध का अर्थ है निशान और सदिग्ध का अर्थ है ग्रनिश्चित ज्ञान । श्रवग्रह और ईहा के ग्रनिश्चय से इसमें भेद ह 1 इसमें अमुक पदार्थ ऐऐसा निश्चय होते हुए भी उसके विशेष गुणों के प्रति सन्देह कहता है | संदिग्ध और संदिग्ध के स्थान पर अनुक्त और उक्तऐसा पाठ मानने वाले धनुवत का यर्थ करते हैं अभिप्राय मात्र से जान लेना और उक्त का अर्थ करते है कहने पर ही जानना | ध्रुव का धर्म है-वयम्भावी ज्ञान और अध्रुव का अर्थ है- कदाचित्शादी ज्ञान। इन बारह भेदों में से चार भेद प्रमेय की विविधता पर अवलम्बित है पाठ भेव प्रमाता के क्षयोपन की पर आश्रित है। उपर्युक्त २० भेदों में से प्रत्येक के १२ भेद होने पर कुन = x १२ = ३३६ भेद हो जाते हैं । इस प्रकार विज्ञान के ३६६ भेद है। इसका विशेष सष्टीकरण इस प्रकार है।