________________
२०२
जैन-दर्शन
माना गया । यह समाधान भी सन्तोपजनक नहीं है । परिवर्तन की विलक्षणता में स्वयं द्रव्य की विलक्षणता कारण है। काल का उससे कोई सम्बन्ध नहीं है । इसके अतिरिक्त और कोई हेतु दिखाई नहीं देता जिसके आधार पर प्रत्येक काल को स्वतंत्र द्रव्य माना जाय । शायद इन्हीं कठिनाइयों के कारण काल सर्वसम्मत रूप से स्वतंत्र द्रव्य नहीं माना गया ।
जैन दर्शन प्रतिपादित तत्त्व का यह विवेचन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। तत्व का ठीक स्वरूप समझे विना अन्य विपयों का यथार्थज्ञान होना कठिन है । प्रमाणशास्त्र, ज्ञानवाद आदि गम्भीर विपयों के लिए तत्त्वज्ञान आवश्यक है।
१- 'कालश्चेत्येके' -तत्त्वार्थ सूत्र ५।३०