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जैन-दर्शन
गुण
अनन्त गुण अधिक होने पर बन्ध नहीं माना जाता । श्वेताम्बर परम्परा की धारणा के अनुसार दो, तीन आदि गुणों के अधिक होने पर जो बन्ध का विधान है वह सदृश अवयवों के लिए ही है, असदृश अवयवों के लिए नहीं । दिगम्बर धारणा के अनुसार यह विधान सदृश और असदृश दोनों प्रकार के अवयवों के बन्ध के लिए है । श्वेताम्बर और दिगम्वर परम्पराओं के वन्ध विषयक मतभेद का सार निम्न कोष्ठकों में दिया जाता है.....
श्वेताम्बर परम्परा
सहश विसदृश १-जघन्य जघन्य २-जघन्य एकाधिक ३-जघन्य- द्वयधिक ४-जघन्य+त्र्यधिकादि ५-जघन्येतर+समजघन्येतर नहीं ६-जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर नहीं ७-जघन्येतर+द्वयधिक जघन्येतर है ८-जघन्येतर+यधिकादि जघन्येतर है
दिगम्बर परम्परा गुण
सदृश विसदृश १-जघन्य+जघन्य
नहीं २-जघन्य+एकाधिक ३-जघन्य द्वयधिक
नहीं ४-जघन्य+व्यधिकादि
नहीं ५-जघन्येतर+समजघन्येतर
नहीं ६-जघन्येतर+एकाधिक जघन्येतर नहीं ७-जघन्येतर+द्वयधिक जघन्येतर है ८-जघन्येतर+त्र्यधिकादि जघन्येतर नहीं
बन्ध हो जाने पर कौन से परमाणु किन परमाणुओं में परिणत होते हैं ? सदृश और विसदृश परमाणुगों में से कौन किसको अपने
whicho hic dicto
नहीं
नहीं
नहीं
१ -- तत्त्वार्थसूत्र (पं० सुखलाल संघवी), पृ० २०२, २०३