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पाडूं।"यों सोचकर ज्यांही उसे पकडनेको जाने लगा कि देवताने आकाश मार्गसे चलदिया। मुरादेव थंमा पकड कर हा हू करने लगा। यह सुन कर उसकी स्त्री धन्ना उसके पास आई और कहने लगी--'अभी हा ह क्यों कि ?' सुरादेवने कहा-"जाने अभी कोई मनुष्य सुझ पर गुस्से होकर एक विजली कीसी चमकती हुई तलवार अपने हाथमें ले मेरे सामने आफर कहने लगा कि-'हे सुरादेव! यदितू इस व्रतको न छोडेगा तो तेरे तीनों बच्चाको तेरे सामने इस तलवारसे मारंगा और पांच शुला कर उन्हें कढाइमें तल उनके लोही मांससे तुझे छींटंगा, और उसने किया भी ऐसा ही, परन्तु मैं न डरा । अन्तमें मेरे शरीरंगे सोलह रोग प्रकट करनेको कहा। और तीन बार कहा । इससे मैं उस दुष्ट पुरुषको पकडने चला तो उसने आकाशमें चल दिया और मैं इस थंभेसे लिपट रहा।
धन्ना बोली-“अपने तीने बालक मौजूद हैं । तुम्हें कोई देव उपसर्ग देनेको आया होगा । उसने तुम्हारे व्रत पचखाण भंग किये। इस लिये यही मन, वचन और कायासे आलोचना कर मायश्चित लीजिये।
तब उस श्रावकने वहीं पर आलोचना कर मायश्चित्त लिया।
फिर सुरादेव श्रावक अणसण कर सुधर्म देवलोकमें अरुणकांत नामा विमानमें चार पल्योपमकी स्थितिसे उत्पन्न हुआ। वहांसे महाविदेह क्षेत्रमें अवतार ले मोक्ष पावेगा।