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________________ (३) तीसरे व्रतके अतिचार:- (१) चोरीकी चीजको लेना. (२) चोरको सहायता देना. (३) राजकी जकातकी चोरी करना. (४) खोटे तोलके बाट रखना. (५) पुरी वस्तुको अच्छी कह कर दे देना या मिलावट करके वेचना. (४) चौथे व्रतके अतिचार:-(२) छोटी उम्रकी अपनी स्त्रीसे विषय करना. (२) बिना परणी स्त्रीसे गमन करना. (३) किसी भी तरहकी कामक्रीडा करना. (४) औरोंकी शादी करा देना. (५) काम भोगमें तीव्र इच्छा रखना. (५) पांचवे व्रतके अतिचारः-(१) खुली या ढकी हुई जमीनकी मर्यादाको छोडना. (२) मर्यादाके बाहर सोना चांदी रखना. (३) मर्यादा वाहर धान्य यो नक्दी रखना. (४) मर्यादा वाहर दो पगे या चौपगे जानवरोको रखना. () घरके सजानेकी चीजोंको मर्यादा बाहर रखना. . (६) छठे व्रतके अतिचार:-(१)उंची दिशाकी मर्यादाको उल्लंघन करना.(२)नीची दिशाकी मर्यादाको उल्लंघन करना. (३) विचली दिशाकी मर्यादाको छोडना. (४) एक दिशाको कम कर दूसरी दिशाको वहाना.(4) संदेह आजानेपर भी आगे बढ जाना। ' (७) सातवें व्रत के अतिचार:-(१) मर्यादासे बाहर संचेत वस्तुका खाना. (२) सचेत वस्तुसे मिली हुइ वस्तुका खाना. (३) अध पकी वस्तुका खाना.(४) भुडता वगैरा खाना.() ऐसी वस्तु खाना जिसमें खावे कम और डालदेवहुत. अब१५कर्मके आने के स्थाने को कहते है जो इस व्रतमें श्रावकको जान लेने चाहिए परन्तु आदरने नहीं चाहिए:-(१) आग जलानेका
SR No.010320
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages67
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size3 MB
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