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तरहका है. (२) आर्तध्यान और रौद्रध्यान धरनेसे, याने मनमें उद्वेग करनेसे और दूसरेका पूरा चीतनेसे.(२) विकथासे और तेल, घी आदिके वर्तनांको खुले रखनेसे (३) हिंसा हो सके ऐसे शखांके इकट्ठा करनेसे या देनेसे. (४)पापोपदेश फरनेसे । इन चारों प्रकारके अनर्थदंड के पच्चखाण.
नवा व्रत-सामायिक व्रत । दसवां व्रत--दिशावगासिक व्रत । ग्यारवां पोषध व्रत । वारवां अतिथि संविभाग व्रत.
(इन चारों के अंगीकार करनेकी विधि मूत्रमें नहीं लिखी परन्तु नीचे अतिचारकी आलोचन विधिमें उनके अतिचार लिखे हैं उसपरसे समझमें आ जाता है.)
. अब भगवान महावीर आनंद श्रावकसे उन अतिचारोंका वर्णन करने लगे, जिन्हे श्रावकको जान लेना चाहिए.
सम्यक्त्वके अतिचार:-१. जिनवाणीमें सन्देह करना. (२) अन्यमतकी इच्छा करना. (३) धर्म कर्मके फलमें सन्देह करना. (४) पाखंडी मतकी प्रशंसा करना. (५) पाखंडी मतका परिचय होना.
अब बारह व्रतके अतिचारोंका वर्णन करते हैं।
(१) प्रथम व्रतके अतिचार-१) किसी त्रस जीवको बांध दिया हो. (२) लकडीसे मारा हो. (३) अंगोपांग छेदे हो. (४) शक्तिसे ज्यादा बोझ रख दिया हो. (५) खाने पीनमें बाधा दी हो. .
(२) दूसरे व्रतके अंतिचार:--(१) किसीको भय हो ऐसा वचन कहना.(२) किसीकी छिपी हुई पातको प्रकट करना. (३) अपनी स्वीके मर्म औरोंको प्रकट करना. (४) किसीको झूठा उपदेश करना. (५) खोटे खत पत्र तैयार करना।