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________________ ( ५६ ) उ -- जैसे. सुवर्ण अग्नि संयोग से मिट्टी से भिन्न होकर शुद्ध हो जाता है वैसे किसी प्रकार की सामग्री मिलने पर आत्मा कर्म से जूदा हो सकता है । . ' पर्यायकार के कथन पर टिप्पनी ' । प्र - जीव के साथ कर्म का सम्बन्ध अगर अनादिकाल से न माना जाय तो क्या दूषण लगता है ? ! उ — अगर जीव को प्रथम माना जाय और पीछे कर्म की उत्पत्ति मानी जाय तो कर्म जब न थे तब आत्मा निर्मल और सिद्धदशा में होता है, वह कैसे संसार में आ सकता है ? क्यों कि जब कर्म ही नहीं किये हैं तव फल कैसे भुगतना ? और अगर कर्म बिना किये ही फल भुगतना पडे तो सिद्ध को भी कर्मफल भुगतना पडेगा और इस से कृत का नाश और अकृत ( नहीं किये ) का आगमन इत्यादि दूषण लग जायेंगे । A ( २ ) प्र - कर्म को प्रथम माना जाय और पिछे से आत्मा माना जाय तो क्या आपत्ति है ? उ - वह भी ठीक नहीं है । क्यों कि जैसे मिट्टी में से घट पैदा होता है उसी तरह जीव उत्पन्न हो सके ऐसे उपादान कारण के बिना जीव कैसे पैदा होगा ? और जो "
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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