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. समय जो समान स्पर्श, रूप, रस, गंध और वर्णवाले होते हैं उन की एक प्रकार की योनि कही जाती है । प्र-कर्म कितने हैं ?
उ — जीव से अनन्तगुना ज्यादह हैं । जीव के प्रत्येक प्रदेश में शुभाशुभ कर्मों की अनन्त वर्गणायें ( समूह ) होती हैं । उन को सर्वज्ञ ही देख सकते हैं ।
प्र-संसारी जीव कैसे होते हैं वह हम को उदाहरण के साथ बतलाओ ?
उखान में जैसे सुवर्ण मिट्टी से व्याप्त होता हैं उस तरह लोकाकाश में संसारी जीव कर्मों से आवृत्त होते हैं ।
प्रभिन्न जाति ( स्वभाव अथवा सत्ता ) वाले कर्म के साथ आत्मा का सम्बन्ध कैसे होता है ?
उ - जिस तरह खान में मंट्टी और सुवर्ण का, अरणी के काष्ट में अरनी का और उस में रहे हुए अग्नि का दूध और उस में रहे हुए घृत का योग समानकाल में ही हुआ होता है । तथा सूर्यकान्तमारी का और तत्रस्थ अमृत का योग समानकाल में ही हुआ होता है । उसी तरह कर्मों का और आत्मा का सम्बन्ध ज्ञानियोंने अनादिकाल से संसिद्ध कहा है ।
प्र आत्मा कर्म से कैसे मुक्त हो सकता है. ?.