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स्तब्ध था ) में क्षोभ पैदा हुआ | इस क्षोभ से सभी जगह सूक्ष्म परमाणु हो गये और फिर उस परमाणुओं में रही उत्सारक
और आकर्षक शक्तियाँ जागृत हुई । उस से वे सब परमाणु एकटे हुए और उनका भिन्न भिन्न समूह बने । इन समूहों की समूह क्रिया के समय एक एक मध्यबिंदू की और अन्य परमाणु आकर्षण से आते हैं और तव सूक्ष्म आघात से सूक्ष्मतम शद्ध (ध्वनि) पैदा होता है यह स्पष्ट है। माया के यह प्राथमिक विकाररुप द्रव्य को आकाश कहते हैं। उसका खास गुण शब्द हैं। और उसका स्वरुप अवकाश है। और फिर शद्वगुण सहित आकाशद्रव्य की उत्पत्ति के बाद उस के कितनेक परमाणुओं में विशेप गति पैदा होने से ज्यादह आघात (स्पर्श) पैदा हुआ और उस से यह द्रव्य के परमाणुओं से अग्नितत्त्व की उत्पत्ति हुई। और अग्नितत्व के कितनेक परमाणुओं में से रसरूप जलतत्त्व की उत्पत्ति हुई। और जलतत्त्व के कितनेक परमाणुओं में से पृथ्वीतत्त्व पैदा हुआ। इस तरह आकाश-वायु-अग्नि-जल और पृथ्वी यह पांच तत्त्वों के परमाणु अर्थात् तन्मात्रायें प्रथम उत्पन्न हुई। ये सब पंच महाभूत कहा जाता हैं। सृष्टि रचना के प्रारंभ में कतरीके चेतन का अव्याकृत माया में स्फुरण होता है। और क्षोभ होने के बाद परमाणुओं की आकर्षक और उत्सारक शक्तियाँ जागृत होती है । और परमाणु के समूह टकराते हैं, उस से वनि होता है और फिर वायु होता है।
योग दिवाकर.'