________________
( २१ ) प्रत्येक अपनी दृष्टि से सच्चा भी था और मृषावादी भी था। यह अनेकान्तवाद मुझे बहुत प्रिय है। उसी में से मैं मुसलमानों की परीक्षा मुसलमानों की दृष्टि से, ईसाइयों की उनकी दृष्टि से करने को सीखा । मेरे विचारों को जब कोई असत्य कहता था तब मुझे पहिले बडा क्रोध आता था। अब मैं उन का दृष्टिविन्दु उनकी नजरसे देख सकता हूँ। और इसी लिए मैं उनके पर प्रेम कर सकता हूँ, क्यों कि मैं जगत् के प्रेम का भूखा हूँ। अनेकान्तवाद का मूल अहिंसा और सत्य का युगल हैं।
जैनों के सिद्धान्त निष्पक्ष है।
श्रीयुत् पंडित लालचंदभाईने । सरस्वती' नामक मासिक के तंत्रीवर्य का जो स्याद्वाद सम्बन्धि अभिप्राय बतलाया है . उसमें अधोभागमें जैनों के सिद्धान्त निष्पक्ष भी है ऐसा भी बताया है। जिस का अवतरण यहाँ दिया जाता है।
जैनों के सिद्धान्त निष्पक्ष और केवल सिद्धान्त भेद की वजहसे आपसमें इर्ष्या-मत्सर आदि से रहित हैं। और उसी वास्ते उल्लेख करते हैं कि--- अन्योन्यपक्षप्रतिपक्षभावाद्, यथा परे मत्सरिणः प्रवादाः । नयानशेषान् विशेषामेच्छन् , न पक्षपाती. समयस्तथा ते ।।
यह श्लोक श्री हेमचंद्राचार्यने जिनेन्द्र महाप्रभु श्री महावीर देव की स्तुति के लिए कहा है। उसका भावार्थ यह है कि---
.'
'"
.