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के निमित्त होती है । और उसी तरह दुःखनिमित्त वस्तु सुख हेतु. भी होती है । यह अनेकान्तवाद नहीं तो और क्या है ? | इस तरह वह महाशय कितनेक हेतु बतला कर, अनकान्तवाद सब को मान्य करना पडेगा यह जाहिर करते हैं । नैयायिक अंधकार को der अभाव मानते हैं । और मीमांसक तथा वेदांतिक उसको भावस्वरूप कहते हैं । देखने की बात यह है कि आज तक इस का कोइ निश्चय नहीं हुआ | मगर आश्चर्य है कि इस अनिश्चितता में ही जैनधर्म का अनेकान्तबाद निश्चित होता है । क्यों कि वे तो वस्तु को अनेकान्त स्वरूप मानते हैं । वह चीज किसी एक अपेक्षा से भावस्वरूप भी है और किसी अपेक्षा से प्रभाव स्वरूप भी है । ऐसे अनेकों तर्कवितर्क कर के उक्त पंडित शिरोमणिने अनेकान्तवाद का अच्छा सा समर्थन किया है ।
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गुजरात के प्रसिद्ध विद्वान् प्रो. आनंदशंकर बापूभाई ध्रुव का अभिप्राय,
प्रोफ़ेसर साहवने अपने किसी एक व्याख्यान में कहा था किं स्यादवाद का सिद्धान्त एकीकरण के दृष्टिविन्दु को हमारे: सामने उपस्थित करता है । शंकराचार्यने जो आक्षेप स्याद्वाद पर किये हैं उन का सम्बन्ध मूल रहस्य के साथ नहीं है । यह तो एक मानी हुई बात है कि विविध दृष्टिबिन्दु से निरीक्षण किये बिना कोई भी वस्तु पूर्णरीत्या हम ज्ञात नहीं कर
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