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________________ बन सकें इतना ध्यान दया है। और तैयार होने के बाद अमृतलाल अमरचंद सलोत, जो कि एक अच्छे विद्वान् है उस के पास भी निरीक्षण कराया है | भी उस में कोई त्रुटि होवे तो वाचकवृन्द को विज्ञप्ति करता हूं कि कृपा कर के मुझे वह पतिदोष अवश्य लिखें । क्यों कि "गच्छतः स्खलनं क्वापि भवत्येव प्रमादतः " इस कथन से भूल के पात्र सब कोई होते है, इसी लिये क्षमा याचता हूं। यह पुस्तक हमारी धार्मिक समितिने हमारी संस्था के पांचवीं और छठी कक्षाके धार्मिक कोर्स में दाखिल कीया है। संस्था के प्रत्येक संचालक को निवेदन करता हूं कि यह किताब यदि उपयोगी होवे तो आप के धार्मिक कोर्स में अवश्य दाखल करें । जैन श्वेताम्बर एज्युकेशन बोर्ड के माननीय कार्यवाहकों को निवेदन करता हूं कि उचित समझ कर धार्मिक कोर्स में स्थान देने की कृपा करें। जैनतत्वसार-सारांश की, गुजराती द्वितीयावृत्ति में, व्यक्त किया मुताबिक, परम पूज्य प्रातः स्मरणीय पूज्यपाद, आचार्य श्री कृपाचन्द्रजी महाराज श्री के, प्रशस्य और विद्वान् शिष्य रत्न प्रवर्तकजी महाराज श्री सुखसागरजी महाराज के सदुपदेश से श्रीमान् सेठ प्रेमकरण मरोटीने श्री जिनदत्तमुरि ब्रह्मचर्याश्रम तरफ से यह पुस्तक की द्वितीयावृत्ति का हिन्दी
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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