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________________ २२ इस पुस्तक में कौनसे २ विषयों का समावेश कीया गया है, सो विषयानुक्रमणिका और उपोद्घात पढनेसे ज्ञात हो सकता है ! जैन धर्म विश्वधर्म है, उसके सिद्धान्त ( उसूल ) विश्व - मान्य है, जगत् के सभी धर्मों में उस का प्राधान्यपद है, उस का क्षेत्र विशाल है, और सिद्धान्तों में संकुचितताका स्थान नहीं है, यह बात को सिद्धान्त पारंगत बतला सकते है | उस के सिद्धान्तों में अहिंसा और स्याद्वाद की मुख्यता, सर्व श्रेष्ठता और सर्वोपरिता है, उस का यथास्थित ज्ञान करने से और उस ज्ञानामृत का पान करने से जीव मुक्तिगामी, हो सकता है, यह कहना तद्दन निर्विवाद और निःशंक है । इस प्रकार के सिद्धान्त कोमल बुद्धिवाले विद्यार्थीगण पढें, और उस में उन की अभिरुचि हो इस अभिप्राय से इस ग्रन्थ में जैन धर्म के मुख्य २ सिद्धान्तों का दिग्दर्शन कराया है । तत्त्वज्ञान का अच्छा प्रचार होवे, और सब कोई इस का लाभ पा सकें इस लिये गुजराती ग्रन्थ की अपेक्षा इस का ज्यादा खर्च होने पर भी किंमत बहुत कम रक्खी है । परम पूज्य प्रातःस्मरणीय आचार्य महाराज श्री विजयनेभि सूरीश्वरजी महाराज के प्रखर विद्वान् और प्रशस्य शिध्य आचार्य श्री विजयोदय सूरीश्वरजी महाराजने इस ग्रन्थ का संपूर्ण रीति से अवलोकन किया है । इसमें जो २ बातें लीखी है वे शास्त्रगम्य है और मतिकल्पना से रहित है । और जीतना. +
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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