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________________ अभिप्राय । रा. रा. धर्मस्नेही श्रीयुत् शंकरलालभाई । ___ " जैन तत्त्व सारांश " पढा, यह पुस्तक प्रगट करने के लिये आपने अच्छा प्रयास किया है । अल्प समय में दूसरी आवृत्ति नीकालने का प्रसंग आया, इसीसे मालूम होता है कि वाचकवर्ग में इस की अच्छी हुई कदर हैं। शाधुनिक समय में जडजीवन जीने के लिये बहूत से मोहक साधन मीलते हैं । और उसी से हमारे बालक और युवकोंकी खराबी हो रही है, इस लिये जडजीवन के प्रेरक साधनों को हठानेवाले और आत्मजीवन जीलाने वाले साधनों को पुष्टि के लीये इस प्रकारके तत्त्वज्ञान के पुस्तकों की अत्यावश्यकता हैं, और उस प्रकार की आवश्यकता, सच्ची चेतनता, और विचारशक्ति हमारा साहित्य ही पूर्ण कर सकता है। उक्त बाबतों का ज्ञान विद्यार्थीगण आपकी किताब पढने से प्राप्त कर सकते है, इसी लीये आपका यह प्रयास स्तुत्य और उपकारक है। आप को विद्यार्थीगण से अच्छा परिचय है, उनकी त्रुटियां आप अच्छी रीतसे समझ सकते है । और उनको हठाने के लीये कौनसे २ उपाय सफल हो सकते है उस को विचारने की आपकी बुद्धि है, इसी लीये भविष्यमें विद्यार्थीगण जैन तत्त्वज्ञान को अच्छी रीतसे समझ सकें और अपने आचार-विचार में
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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