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________________ ने उजमणा किया, तथा धम्माभाई पानाचंदभाई मोतीभाई सवने चतुर्थ व्रत ग्रहण किया. सं. १९७५-७६ दो चौमासा कर के आपने विहार किया. बाद में बड़ौदा पधारे, वहां पर श्री संघ के आग्रह से सं. १९७७ का चौमासा किया, वहां पर रतलामवाले सेठजी दर्शनार्थ आये थे, और उन्होंने रूपया और नारियल की प्रभावना की. बाद आप विहार कर के . अहमदावाद, कपडवंज, रंभापुर, मावा हो कर रतलाम पधारे, और श्री संघ के आग्रह से सं. १९७८ का चौमासा रतलाम किया. वहां पर उप-. धान हुआ, उस समय एक बड़ी सभा की गई थी, और महाराजा रतलाम नरेश सजनसिंगजी पाप की मुलाकात के लिये एवं दर्शनार्थ पधारे थे, और साधु साध्वी पांच को दीक्षा हुई। वहां से विहार कर के इन्दौर पधारे, वहां पर श्री संघ के अाग्रह से सं. १९७९ का चौमासा किया और भगवती सूत्र वांचा, उपधान हुआ, वहां रतलामवाली सेठाणीजी आये थे, उन्होंने रूपया और नारियलकी प्रभावना की; और वहां पर श्री जिनकृपाचंद्र. सूरि ज्ञानभंडार इस नाम से ज्ञानभंडार स्थापित कीया. बाद में महोपाध्याय वाचक, पंडित वगेरे पदवी दी गई. बाद में विहार कर के मांडवगढ श्री संघ के साथ पधारे, वहां से भोपावार, राजगड़ वगरे यात्रा करते हुए खाचरोद हो कर के शेमलीयाजी पधारे, बाद में सैलाना पघारे, ओर वहां के दरवार को धर्मोपदेश सुनवा करके वाद में प्रतापगढ पधारे, और वहां से मन्दसौर पधारे. सं. १६८० का चौमासा भन्दसौर कीया. वहां से विहार कर के नीमच, नीवाड़ा, चित्तोड हो कर के करेडा में श्री पार्श्वनाथस्वामी की यात्रा कर के देवलवाड़ा होते हुए उदेपुर पधारे, वहां से कलकत्तेवाले वावु चम्पालालजी प्यारेलाल के संघ के साथ केशरीयाजी पधारे, शोर वहां से आ कर के संघके आग्रहसे सं. १६८१ का चौमासा उदेपुर में किया. ठाणा २५ के साथ में चौमासा वाद विहार कर के राणकपुर, नाडोल वगेरे तीर्थोकी यात्रा करते हुए जालोर पधारे, वहां से विहार कर के बालोतरा पधारे सं. १९८२ का चौमासी वालोतरा में कीया. बाद में श्री नाकोडा पार्श्वनाथस्वामिकी यात्रा करते हुए बाड़मेर पधारे, वहां से संघ के साथ जैसलमेर पधारे, वहां पर यात्रा कर
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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