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जीव की रक्षा करता हुआ आकाश में उडता है, किन्तु उडने के समय जिस पर उस की छाया गिरती है वह राजा होता है । इस दृष्टान्त में हुमाय पक्षी स्वयं नहीं जानता कि मैं किसी पर छाया करता हूँ और वह मनुष्य भी नहीं जानता कि मेरे पर हमाय पक्षी की छाया होती है । इस तरह प्रसंग से दोनों अज्ञान हैं तथापि हुमाय पक्षी की छाया के महात्म्य के उदय से उस के दरिद्रता नष्ट होती है और वह राजा होता है । ऐसे ही ईश्वर नामस्मरण से पाप क्यों नष्ट न हो ? अर्थात् पाप नष्ट होते हैं और जब पाप जाता है तब संपूर्ण रीत्या आत्मशुद्धि होती है और आत्मशुद्धि होने से उत्कृष्टात्मक ज्ञान होता है और ऐसे ज्ञान से फिर कर्मों का नाश होता है । अन्त में कर्मनाश से मोक्षप्राप्ति हो जाने से अक्षयस्थिति, अनंतज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्तवीर्य और अनन्तसुख और एक स्वभावता होती है । संक्षेप मैं सज्ज्योति जागृत होती है ।
ooooooooooooo जैन तच्चसार समाप्त. oooooooooooo