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________________ १२ मरुधर देशमें शहर जोधपुरसे पश्चिम दिशामें चामुं नामके शहरमें आपश्री का जन्म हुआ था । आपश्री के पिता का नाम मेघरथ, गोत्र वॉफणा तथा माताका नाम अमरादेवीके कुक्षीसे सं. १९१३ में जन्म हुआ. आपश्री वाल्यअवस्थामें व्यवहारिक अभ्यास करनेके बाद कुमार अवस्था . हुइ तव पूर्व सुकर्म संयोगसे आपश्रीको गुरु श्री अमृतमुनि का संयोग हुआ, तब उनके पास धार्मिक अभ्यास पंचप्रतिक्रमण वगैरह व्याकरण और न्याय कोषका अभ्यास किया, वादमें आपश्रीको गुरुमहाराज जैन सिद्धान्त पढ़ानेके योग्य जान कर सम्वत् १९३६ में आपश्रीको यतिसम्प्रदाय की दीक्षा दी. फिर गुरू महाराजकी सेवा करते हुवे अच्छी तरहसे जैन सिद्धान्तका अभ्यास करने लगे, उस समय आपके गुरू महाराज को तथा आपश्रीको क्रिया उद्धार करनेका परिणाम हुआ, तव श्राप अनेक देशों में रहे हुऐ प्राचीन अर्वाचीन बहुत से तीर्थों के दर्शन करते हुये अपनी आत्मा को पवित्र करते हुए संयम की भावना भाते हुऐ रायपुर पधारें. वहां पर सं. १९४१ में श्री गुरु महाराज का निर्वाण हो गया. गुरु महाराज का वियोग आप को बड़ा दुस्सह हुआ, क्यों कि ( नहि केनापि कस्यापि मृत्युः शक्यो निषेधितुम् ) आपको वैराग्य की परिणति अधिक वढी, और सं. १९४५ में नागपुर में आपश्रीने क्रिया उद्धार किया. वहां पर इन्दौर के श्रीसंघ की विनंति आने से आपश्री इन्दौर पधारें, वहां पर श्री संघके श्राग्रहसे कितनेक वर्ष इन्दौर रह कर व्याख्यान में 'पैंतालीस आगम, वगैरे सूत्र वांचे. वादमें आपश्री विहार करके कायथे पधारे, वहां पर आपश्रीने एक भाग्यशाली को दीक्षा दा. ओर आपश्री संघ के साथ धुलेवा यात्रा के लिये पधारे. बादमें सं. १९५२ का चौमासा उदयपुर में किया, वादमें विहार करते हुने, शुद्ध संयम को पालते हुने खैरवाड़े पधारे, वहां पर जिन मंदिर की प्रतिष्ठा की, बाद में विचरते हुए गोडवाल में पधारे वहां पर सं. १९५३ का चौमासा देसूरि में किया, वादमें तार्थी की यात्रा करते हुबे जोधपुर पधारे, सं. १९५४ का चोमासा जोधपुर किया. बाद में विहार कर के जेसलमेर पधारे, वहां पर सं. १९५५ का
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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