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________________ (१२० ) उ० जिस तरह पारद अनेक धातुओं को हजम कर जाने पर भी गुरुत्व को प्राप्त नहीं होता, चंपा से पुष्प से सुवासित अथवा किसी सुगन्धी धूप से धूपित वस्त्र वजनदार नहीं होता, एक तोला सिद्ध किया हा पारद सौ तोला सुवर्णं हजम कर जाता है किन्तु वजन में नहीं बढता और मशक में जैसे हवा भरी जाती है मगर वजनदार नहीं होती वैसे ही निगोद के जीव आहार करते हैं किन्तु गुरुत्व को प्राप्त नहीं होते । प्र. निगोद के जीव किन कर्मों से अनन्त काल पर्यन्त दुःखी होते हैं ? उ० निगोद के जीव स्थूल आस्रव को सेवन नहीं कर सकते - वे एक को छिन्न कर के एक शरीर में अनन्त रहे हुए - हैं। पृथक् पृथक् गृह से रहित होते हैं। पारस्परिक द्वेष ' के कारणभूत तैजस कार्मण शरीर में संस्थित होते हैं। अत्यंत संकीर्ण निवास मिलने से परस्पर को छिन्न कर के निकाचित कर्मों को उपार्जित करते हैं, और एक जीव ' अनेक जीवों के साथ वैर करता है, और भवी एक जीव को एक जीव प्रति का वैर अभेद्य होता है तो अनेक जीवों का वैर क्यों अतीव अभेद्य और अनन्त १. Air Pump से विलकुल हवा रहित Vacuum नहीं मगर साधारण रीति से खाली कीइ हुई और फिर भरी हुई मशक.
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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