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श्री कृपाचन्द्रसरीश्वरजी के
संक्षिप्त चरित्र,
शैले शैले त माणिक्यं, मौक्तिकं न गजे गजे । साधवो नहि सर्वत्र, चन्दनं न वने वने ॥
महात्मा पुरुषके जीवनवृत्तान्त संसारमें कितना लाभ कर सकते हैं, और ऐसे जीवनवृत्तान्तों के प्रकट करनेकी कितनी आवश्यकता है ? यह बात समझानेकी कुछ भी जरूरत नहीं है।
' इस पवित्र आर्यभूमि में अब भी ऐसे ऐसे महात्मा मौजूद है कि, जिनसे भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास, साहित्य और आर्यत्वके गौरव की रक्षा हो रही है. सुप्रसिद्ध. खरतरगच्छाधिराज जिनकृपाचन्द्रसूरीश्वरजी उन महात्माओं में से एक हैं ! एक साधारण प्रदेशमें जहां पर धर्म सामग्री का प्राप्त होना दुर्लभ हो वहां जन्म होते हुवे भी जैन समाजमें असाधारण पदवी को प्राप्त करना, यह कोई सामान्य बात नाहं है। .