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________________ hom ११ वाँ अधिकार. ब्रह्मस्वरूप वर्णन. * प्र० ब्रह्म क्या है ? उ० ब्रह्म वही है जिस को हम सिद्धपुरुष कहते हैं । जो शुद्ध और निर्मल चित्तवाले योगी हैं उन को ध्यान करने योग्य वह ब्रह्म है । और जिस को मुमुक्षु - मुक्त होने 1 । की ईच्छा रखनेवाले इस दुस्तर पारावार में तैरने के वास्ते नौका समान मानते हैं । " प्र. अगर यह सृष्टि ब्रह्म से उत्पन्न नहीं है तो कहाँ से उत्पन्न हुई और कहाँ कैसे प्रलय को पायेगी ? उ० जवाब संक्षेप में ही है । त्रिकालवेत्ता वीतरागप्रभुने फरमाया है कि काल, स्वभाव, नियति, कर्म और उद्यम ( वीर्य ) से यह समवाय पंचक से ( पाँचों के मिलन से ) सृष्टि की उत्पत्ति और लय होता है । + प्र० ब्रह्म में ब्रह्म कैसे लीन होता है और ज्योति में ज्योति कैसे मिलती है वह बतलाओ ।
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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