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होती या नहीं ? जगत का स्वरूप क्या है ? कर्म जड है ? किस प्रकार प्रकट होते हैं ? उस के उदय पाने के कितने रास्ते हैं ? स्वर्गनरक, पुन्य-पाप प्रत्यक्ष न होने पर भी मानने योग्य है ? गृहस्थधर्म कैसा हो ? परमधर्म कैसा हो ? परमधर्म कौनसा है ? प्रतिमा पूजन से क्या लाभ है ? जड के पूजने से क्या लाभ होता है ? परमार्थ की सिद्धि किस से होती है ? मुक्ति प्राप्त करने का सर्व दर्शनों से मिलता कौनसा प्रधान मार्ग है ? सिद्ध भगवन्त और निगोद का झ्या स्वरूप है ? इत्यादिक अनेक उपयोगी और आवश्यक बातें दलीलों सहित बुद्धि ओर ज्ञान में आ सकें इसी तरह दी गई हैं, इतना ही नहीं, उस का पृथक्करण सुगमता के साथ इस ग्रन्थ के कर्ता विद्वान श्रीजिनभद्रसूरि के संतानीक-वाचकसूरचंद्र महामुनिराजने कर दिखाया है, जो हरेक तत्वाभिलाषी व आत्मार्थी भाइयों और बहनों को आवश्य वांचने योग्य है । और मनन करने से जैनधर्म पर अपूर्व श्रद्धा उत्पन्न करें यह निःसंदेह बात है । इस पुस्तक के लेख उपरांत श्रीमद् उपाध्याय श्रीयशोविजयजी विरचित सवासो १२५ गाथा का स्तवन में से पूजन अधिकार की ८-९ और १० दसवी ढाल का सम्पूर्ण विवेचन प्रश्नोत्तर के रूपसें प्रकाशित कर के पूजन का विषय दृढ किया गया है ।
जैनतत्त्वसार के विद्वान ग्रन्थकारने प्रतिमापूजन के तीन अधिकार वर्णन करने में इस विषय को प्रति उत्तम बना दिया