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________________ ( ७०) उ० कर्म जड हैं मगर उस का स्वभाव ऐसा है कि वह किसी की प्रेरणा के विना स्वयं आत्मा को स्वस्वरूप के योग्य फल देता है; और इसी से उस का कोई प्रेरक नहीं है। प्र. जीवों का कर्म के साथ कैसा सम्बन्ध है ? । उ० जो जीव अजीव शरीर के साथ सम्बन्ध रख के वर्तमानमें जीवित हैं, भूतकालमें जीवित थे और भविष्यकाल में जीवित रहेंगे; वे सबों का कर्मों के साथ त्रैकालिक संगम है ऐसा शास्त्रकार कहते हैं। प्र० यह जगत् कैसा है ? 5. यह संपूर्ण विश्व षड्द्रव्य और पंचसमवायरूप है । प्र० षड्द्रव्यों के नाम और उस की पहिचान कराओ । ७. धर्मास्तिकाय,अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, पुद्गलास्ति काय जीव और काल ये पड्द्रयों के नाम हैं। धर्मास्तिकाय गतिमें सहायक होता है। अधर्मास्तिकाय स्थितिमें सहाय करता है । आकाशास्तिकाय अवकाश देता है। पुद्गला. स्तिकाय से जीव आहार-विहारादि को करता है। इस में कर्मों का अन्तर्भाव हो जाता है । काल मनुष्यादि सर्व प्रमाणयुक्त वस्तुओं के प्रमाणमें उपयोगी होता है । जीव । चेतनावान होता है। प्र. जीव किस के सामर्थ्य से कर्मों का ग्रहण, धारण, भोग और शमन करता है ?
SR No.010319
Book TitleJain Tattvasara Saransh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurchandra Gani
PublisherJindattasuri Bramhacharyashram
Publication Year
Total Pages249
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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