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पंचम अधिकार.
मुक्त जीवों को कर्मबन्ध नहीं होता। . अ० अगर जीव का स्वभाव कर्मग्रहण करने का है तो वह
अपने स्वभाव को छोड कर मुक्त कैसे होगा । उ० जीव और कर्म का सम्बन्ध अनादि काल से है, परन्तु
अमुक सामग्री का संयोग होने पर वह मुक्त हो सकता है । दृष्टान्त यह है कि पारद का स्वभाव चंचल और अग्नि में अस्थिर रहने का है। तो भी अगर उस को तथाप्रकार की भावना देने से पारद अग्नि में स्थिर रहता है । यद्यपि अग्नि दाहक स्वभाववाली है मगर पारा स्थिर रहता है।
द्वितीय दृष्टान्त-अग्नि में दाहकता है। मगर उस पर मंत्र या औपधि से प्रयोग किया जाय तो हम उस में प्रवेश कर