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चतुर्थ अधिकार.
जीव और कर्म का संयोग । प्र० जीव अमूर्त है और कर्मसमुदाय मूर्त है । तब उन दोनों
__का संयोग कैसे होगा? उ० जीव की शक्ति से और कर्म के स्वभाव से दोनों का
संयोग हो सकता है। गुण का आश्रय द्रव्य है। "गुणानाम आसवो द्रव्यम् ” संसारी जीव-द्रव्यका गुण कर्म है। और इसी से गुण गुणी का आश्रय करें तो स्वाभाविक ही है। उदाहरण हम ले सक्ते हैं कि आकाश जो अमूर्त है उस को विचक्षण लोग मूर्त और अमूर्त का, गुरु और लघु आदि सर्व पदार्थों का आधार मानते हैं। और भी विचार कीजिये कि अरूपी आकाश हमेशां रूपी द्रव्यों को कैसे धारण करता होगा ? और भी विषय