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(६०) सत्तरमो.अधिकार.
भगवंतनी प्रतिमा पूजवाथी पुण्य थायछे ए कयन जरा पण केम संभवे ? अजीवथी फलसिद्धि केवी रीते थाय?
__ अजीवनी सेवाथी शुं थाय एवी शंका मनमा बीलकुल लाववी नहि. केमके जेवा आकार- निरीक्षण थाय तेवा आकार संबंधी धर्मठे प्रायः सनमां चिंतवन थाय. संपूर्ण शुभ अंगे विराजित पुत्रिका (पूतळी) जोवामां आवतां. ते तादृश मोहर्नु कारण थायछे. कामासननी स्थापनाथी कामिजनो कामक्रीडा संबंधी विकारोने अनुभवे छे. योगासनना अवलोकनथी.. योगीओनी योगाभ्यासमां मति थायछे, भूगोलथी तद्गत वस्तुनी बुद्धि थायछे. लोकनालिथी लोकसंस्थिति (लोकनी रचना) समजायछे. कूर्मचक्र, अहिचक्र, सूर्यकालानलचक्र, चंद्रकालानलचक्र अने कोटचक्र ए आकृतियोथी अहीं रह्या रह्या तत्संबंधी ज्ञान थायछे. शास्त्र संबंधी वर्णों (अक्षरो)नो न्यास (स्थापना) करवाथी ते वर्णों जोनारने शाखनो बोध थायछे. नंदीश्वरद्वीपना पुट-(नकशा) थी तथा लंकाना पुटथी तद्गत वस्तुनी चिंता थायछे. एवीज रीते स्वईशनी प्रतिमा तेमना ते ते ( प्रसिद्ध) गुणोनी स्मृतिनं कारण थायछे, जे वस्तु साक्षात् दृश्य न होय तेनी स्थापना करवानुं संप्रति (हाल) लोकसिद्ध छे. अत्र दृष्टांत. पोतानो पति परदेश गयो होय त्यारे सती स्वी पतिनी प्रतिमान दर्शन करेछे. रामायणमां सांभळवामां आवेछे के, श्रीरामचंद्र परदेश (वनवास) गया त्यारे भरत नरेश्वर रामनी पादुकानी राम प्रमाणे पूजा करता हता. सीता पण रामनी आंगळीनी मुद्रिकानुं आलिंगन करी राममाप्तिनु मुख मानती हती.