________________
(४७) निषेध करेछ. सिद्धो निराहार छे : आधुओ पण क्वचित् क्वचित् (पर्वदिवसोमां) आहारनो त्याग करेछे. सिद्धो द्वेषथी मुक्त छ : साधुओ सर्व जीवो उपर रुचि सहित मैत्री धारण करेछे. सिद्धो वीतराग छे : साधुओ बन्धुओना बंधनथी रहित थायछे. सिद्धो निरंजन छे : साधुओ प्रीतिविलेपनादिथी शून्य रहेछे. सिद्धो निष्क्रिय छे साधुओ आरंभसरंभना विलंभ (विशेष प्राप्ति) थी दूर रहेछे. सिद्धो निःस्पृह छे : साधुओ कोइ प्रकारनी आशा राखता नथी. सिद्धो अस्पर्धक छे : साधुओ वादविवाद करता नथी. सिद्धो निर्बन्धन छे : साधुओ स्वेच्छाविहारी छे. सिद्धो निःसंधि छे : साधुओ परस्परनी मित्रताथी विरक्त रहेछ. सिद्धो केवलदर्शी छे : साधुओ सर्व जगत्स्वभावनी अनित्यता जोनारा छे. सिद्धो आनंदथी परिपूर्ण छ । साधुओ अंतःकरण शुद्ध राखेछे अने संतोषथी समभाव भावेछे. इत्यादि प्रकारे जे गुणो सिद्धोमां होवार्नु शास्त्रोमां जोवामां आवेछे ते गुणोने मुमुक्षुओ प्रकल्पी (धारी) यथाशक्ति आदरीने क्रमे करी सिद्ध थायछे. वीजा गृहस्थो पण जे दुष्कर्मनी शांति माटे पोतानी शक्ति प्रमाणे ते गुणोने देशथी ( अंशतः-सर्वथा नहि ) अनुसरेछे ते पण अनुक्रमे सुखी थायछे*
गृहस्थो त्यारे भले एज गुणोनो चिरकाळ देशथी आश्रय करो पण जे काममा जीवहिंसा थायछे तेनो आश्रय करेछे ते शुं सारं ? ___ गृहस्थो प्रायः स्थूलबुद्धि, अधिकचिन्तायुक्त, आरंभसहित अने परिग्रह-(धनधान्यादि) मां आदरवंत होयछे. तेथी सूक्ष्म
* श्रीपरमेश्वर छे अने तेनी सेवाथी मुक्ति मळेछे एवं माननारा सर्व शासन ( मत-दर्शन ) ना लोको परब्रह्म पामवानी इच्छाथी परमेश्वरग्रीत्यर्थ ए ज गुणोने अनुसरेछे,