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( १६,), सातमो अधिकार,
मुक्तिमार्ग ( कळशना नाळचानी पेठे ? ) सदाकाळ वहेतो रहेशे अने संसार पण भव्यशून्य थशे नहि-आ वाक्य परस्पर विरुद्ध वचनविलासने लीधे संगतियुक्त लागतुं नथी तेनु केम ? . ...
भगवान्नु ए वचन असत्य नथी पण अल्प. बुद्धिवाळा जीवोना चित्तमां ते वेसे नहि ए स्वाभाविक छे. ए उपर एक लौकिक दृष्टान्त छे, जे सांभळतांज श्रोताजनोनुं मन स्थिर थाय तेमछे. नदीओना इदमांथी नदीप्रवाह नीकळीने सदाकाळ समुद्रमणी वहेछे तोपण हुदो खाली थतां नथी, नदीप्रवाह बंध थतो नथी अने समुद्र कदी पूर्ण थतो नथी. तेवीज रीते संसारमाथी नीकळीने भव्य जीवो मुक्तिमां जायछे तोपण संसार खाली थतो नथी, भव्यजीवो खूटता नथी अने मुक्ति भराती नथी. आ दष्टान्त अने दान्तिकनुं साम्य सम्यक् प्रकारे अवलोकन करनारनी अर्हद्वचनमांज प्रतीति थशे, अन्यत्र नहि. वीजुं पण एक लागु पडतुं दृष्टान्त प्रमाणना जाणकारोए सांभळवा योग्य छे. कोइ बुद्धिशाळी जन्मथी मांडीन मरण पर्यन्त त्रण लोकनां सर्व शास्त्रोनू, हिंदुओनां छ दर्शन अने यवनशास्त्रोनु, आत्म शक्तिथी पठन करतो असंख्य आयुष्य निर्वहन करे तोपण तेना अश्रान्त पाठथी तेनुं हृदय कदी शास्त्राक्षरोथी पूर्ण थाय नहि. शास्त्राक्षरो खूटे नहि अने शास्त्रो खाली थाय नहि. तेवीज रीते संसारमाथी गमे तेटला भव्यो मुक्तिमां जाय तोपण मुक्ति पूराय नहि, भव्यो खुटे नहि अने संसार खाली थाय नहि. अर्थात, मुक्तिमार्ग अन्तराय विना वहतो रद्देशे. आ दृष्टान्त अने हाष्टन्तिकनी भावना विजोए स्वचित्तमां चिन्तवी लेवी अने एवां अनेक दृष्टान्तो योजत्रां.