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(११) चोथो अधिकार.
जीव अमूर्त अने कर्मो मूर्त छे. ए बेनो संयोग न्यायथी केवी रीते घटे ? भिन्न वस्तुओ आधाराधेय भावने केवी रीते धारण करे?
* जीवनी शक्ति अने कर्मना स्वभावने लीधे एमनो संयोग घटी शकछे. गुणनो आश्रय द्रव्य छे अने संसारी जीव-द्रव्यनो गुण कर्म छे एटले गुण (कर्म) गुणि-(जीव)नो आश्रय ले ए न्याय छे. अमूर्त आकाशने विचक्षणो मूर्त तथा अमूर्त, गुरु तथा लघु, सर्व पदार्थोनो अविनाशी महान आधार मानेछे. विचार करो के आ अरूपी आत्मा रूपी द्रव्योने निरंतर केवी रीते धारण करेछे ? मिथ्यात्वदृष्टि, भ्रम, कर्ममत्सर, कषाय, काम, कला, गुण, क्रिया अने विषयो एमांनुं शुं शुं शरीरमा रहेलो आत्मा धारण नथी करतो? जो एम कहवामां आवे के ए गुणो तो शरीराथि छे तो विचारवान के शरीर जीवरहित थायछे त्यारे ते देखाता केम नथी ? अर्थात् ते गुणो शरीर आश्रि नथी पण जीव आश्रि छे. वधारे दूर शा माटे ? आ दृश्यमान शरीरने अदृश्य आत्मा केवी रीते धारण करी रह्योछे एनो ज विचार करो एटले अरूपी आत्मा अने रूपी कर्मों एमनो संगम कौतक उत्पन्न नहि करे. जेम कपूर, हिंग वगेरे सारी नरती वस्तुनी गंध स्थिति प्रमाणे आकाशने आश्रि रहेछे तेम कर्मो जीवने आश्रि रहेछे. इत्यादि प्रत्यक्ष दाखलाओथी निश्चित थायछे के कर्मों आ. स्मानो आश्रय लेछे, जे भवी ( संसारी) कहेवायछे. ए रीते आस्मानो अने कर्मनो आश्रयाश्रेय भाव पण सिद्ध थयो.
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* कल्पान्त काळे सर्व विश्व निराकार ईश्वरमां लीन थशे त्यारे भूतगण अने गुणोनी स्थिति पण तेमां थशे. कर्तृवादी,