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फिर श्री दशवेकालिक सूत्र के ५वें अध्याय के दूसरे उद्देश्य की २-३ री गाथा में गोचरी लावो उससे पूर्ति नहीं होवे तो दूसरी बार जाकर लाना कहा, श्री उत्तराध्ययन सूत्र के पहले अध्याय की ३१वीं गाथा में तथा श्री दसवेकालिक सूत्र के ५३ अध्याय के दूसरे उद्देश्य की ४थी गाथा में 'काले काल समायरे' जिस ग्राम नगर में जो समय भिक्षा काल का हो उसी समय गोचरी जाने को कहा है, फिर श्री उत्तराध्ययन सूत्र के २६वें अध्याय में तीसरे प्रहर गोचरी कहा है, गोतम आदि साधु भी तीसरे प्रहर गोचरी गये जाना जाता है। किन्तु यह तो पूर्व दिशा के प्रान्तों की बात है वहां आज भी तीसरे प्रहर में भिक्षा का काल जान पडता है, इसलिये उ-सर्ग मार्ग की अपेक्षा व्यवहार में प्रायः करे तीसरे प्रहर की भिक्षा करते हुए भी प्रथम प्रहर में निषेध नहीं किया, फिर श्री
आचारांग सूत्र में उत्सर्ग, अपवाद दो मार्ग बताये हैं उसमें जिनकल्पी सदा उत्सर्ग मार्ग को अंगीकार करते हैं तथा स्थविर कल्पी उत्सर्ग या अपवाद जैसा अवसर देखे वैसा करे, दोनों मार्ग का अनुसरण करता हुआ भगवान की आज्ञा का उलंघन नहीं करता है । इसलिये साधु अवसर देखे वैसा करे, स्वयं के व्रत पच्चक्खाण तो स्वयं से ही पलंगे, दूसरों के पलाने से अन्त तक नहीं निभेंगे, स्वयं