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दूसरे कौनसे आर्य देश हैं ? उन्हें बताओ ! तथा श्री वृहत्कल्प सूत्र में साधु को विहार करने की दिशा बताई है कि पूर्व में अंगदेश चम्पानगरी, दक्षिण में कोशंबी नगरी पश्चिम में मथुरा नगरी अर्थात् सिंध की भूमि और उत्तर में सावत्थी नगरी जो लाहौर की मृमि, इस भूमि से आगे जावे नहीं, जावे तो ज्ञानादि रत्नत्रय का नाश हो इस न्याय से तो इस देश में ही साधु है, दूसरे स्थान में नहीं, चतुर होंगे वे परीक्षा कर लेंगे।
पिर कोई ऐसा कहता है कि साधु है तो तीसरे प्रहर गोचरी क्यों नहीं करते ? ग्राप में कैसे उतरे ? कविता कैसे करे ? चित्र आदि कैसे बनावे ? लिखे क्यों ? परस्पर में संभोग क्यों नहीं ? पांच महाव्रत में अतिचार कैसे लगावे । किवाड कसे बन्द करे ? नित्य धोवण कैसे लेवे ? अन्य श्रावकों को पौषध कसे करावे ? अब इनका उत्तर कहते हैं कि जो तीसरे प्रहर गोचरी के लिये कहा वह उत्कृष्ट अवस्था में है, परन्तु प्रथम प्रहर में कोई निषेध नहीं है. श्री उत्तराध्ययन सूत्र के तीसवें अध्याय की २०वीं गाथा में चार प्रहर में गोचरी करना कहा है श्री वृहत्कल्प सूत्र के चौथे उद्देश्य के ११वें सूत्र में चारों आहार में से कोई भी आहार प्रथम प्रहर का चौथे प्रहर में रखना नहीं कल्पता, तो प्रथम प्रहर में लाना तो निश्चित हुआ ।