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( १४ ) तो नहीं ! परन्तु अवस्था तो सर्व लोक में है । समाधान___ अवस्था सर्व लोक में है यह ठीक है परन्तु वहां भी अढ़ाई
द्वीप की अपेक्षा से सनय, घडी, दिवस आदि के अनुमान से समय, घड़ी, दिवस आदि की कल्पना की जाती है । अतः उसे काल कहते हैं। उत्तराध्ययन मूत्र के अट्ठावीस में अध्याय में कहा है कि " वत्तणा लक्खणो कालो" काल का लक्षण वर्नना है (व्यतीत होना है)। "एगतं च च पुहुतं च, पज्जवाणं तु लक्खणं' मिलना, भिन्न होना इत्यादि पर्यायों के लक्षण हैं ।
अब पुण्य और पाप इन दोनों के दृष्टांत एक साथ कहते हैं । पुण्य सुख का देने वाला है और पाप दुःख का देने वाला है, ये दोनों कर्म के परिणाम है । इसका दृष्टांत इस प्रकार है जिस प्रकार पथ्य आहार (स्वास्थ्य) शांति प्रदान करता है तथा कुपथ्य आहार यंशाति प्रदान करता है परन्तु किमी जीव का पथ्य आहार बढ़ता है और कुपथ्य आहार घटता है तब वह निरोगी होता है तथा कुपथ्य आहार अधिक मात्रा में बढ़ता है और पथ्य आहार घटता है तब रोग भी उसी के अनुसार व्याप्त होता जाता है । इमी प्रकार पथ्य आहार कम हो और कुपथ्य आहार अधिक हो तो शरीर रोगो हो जाता है और यदि दोनों आहार छूट जाय तो वह मृत्यु को प्राप्त होता है । इसी प्रकार जीव के