________________
(६) ये सब जीव का व्यापार है, परन्तु आश्रव स्वयं अजीव है वह चौथे दृष्टान्त द्वार से जान लेवें । सूत्र में भी आश्रव को स्थान स्थान पर अजीव कहा है। श्री उत्तराध्ययन सूत्र के अठारहवें अध्याय में गईभाली मुनि आश्रव को क्षय करते हुये विचरते हैं ऐसा कहा है तव जीव का क्षय कैसे होता है ? इसलिए मुख्य नय से तो आश्रव कर्म ही है, कर्म आने का उपाय है जीव को भटकाने का स्वभाव है, निश्चय में छोड़ने योग्य है इसलिये इनकी भावना नहीं करना चाहिये । आश्व के प्रभाव से जीव को सुख दुःख उत्पन्न होता है मुक्ति में नहीं जा सकता है । इसीलिए कर्म बंध करता है आश्रव- के अनंत प्रदेशी खंध चौस्पर्शी है, एक काया का योग आठ स्पर्शी है, इस प्रकार आश्रव तत्व का परिचय हुआ। ___ संवर तत्व का परिचय :-संवर के दो भेद १ द्रव्य संवर तथा २ भाव संवर । यहां द्रव्य संवर किसे कहते हैं ? समकित आदि के द्वारा मिथ्यात्वादि कर्म आने के द्वार रोके, यहां आते हुए कर्म रोके इसकी अपेक्षा से द्रव्य संवर कहां है, मन, वचन,' काया संवर, भंडोपगरण संवर इस प्रकार से द्रव्यों का संवर किया उसे संवर. कहते हैं जो पुद्गल रूप है, भाव संवर. हिंसादि से निवर्तना, समकित आदि धारण करना व्रत आदि स्वीकार करना,