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(२) साधु के पास पौषध करे उसका उत्तर ठाणायंग सूत्र के नौवे ठाणे के अर्थ में उदायि राजा ने साधु के पास पोषध किया, तथा श्री कल्पसूत्र में अठार राजाओं ने श्री वीर प्रभु के पास पौषध किये तथा श्री निशीथ सूत्र के आठवें उद्देश्य में ज्ञानी अज्ञानी श्रावक अश्रावक को मध्य रात्रि में तथा सारी रात्री उपाश्रय में ठहरावे तो प्रायश्चित कहा उनके पास भोजन हो धन हो, तथा स्त्री हो उसकी अपेक्षा वर्जित किया है, दूसरे श्री वृहत्कल्प सूत्र में स्त्री हो वहां साध्वी को कल्पता है, पुरुष हो वहां साधु को कल्पता है ऐसा कहा है, सूत्र विरुद्ध नहीं है इसलिए धन, स्त्री तथा भोजन वाला वर्जित है फिर श्री आचारांग मूत्र के दूसरे श्रुतस्कंध के सातवें अध्याय में कहा है कि भिक्खु रात्रि में शामिल रहे हुए हो तो दो हाथ दूरी से मालूम कर फिर पैर रखे । यदि साथ रहने में महाव्रत भंग होता हो तो कैसे सामिल रहे ? चौथे आरे में तो श्रावक सामायिक पोषध अपनी अपनी पोषधशाला में करते थे किन्तु अभी तो लोगों के पास अलग २ जगह नहीं है, इसलिये बहुत श्रावकों की पौषधशाला सम्मिलित होती हैं, जिसमें श्रावक धर्म ध्यान करते हैं, वहां किसी समय साधु भी रहते हैं, तब उस समय श्रावक कहां जावे ? तथा कोई कहे कि जो अधिक श्रावकों की नेश्राय में है तो आप