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समोक्षा मी घट होय तो सर्व घट एक घट मात्र होय तो सामान्याश्रय व्यवहारका लोप हो जाय । ऐसे ये दोय भंग होते हैं इहां जितना विशेष घटाकार होय उतने हो विधि निषेधके भंग होय जाय हैं। अथ.. तिस हा घट विशेष कालान्तर स्थाई होते पूर्व उत्तर कपालादि कुशूलाग्न अवस्थाका समूह सा घटका परात्मा तथा ताके मध्यवर्ती घट सो स्वात्मा सा तिस स्वात्मा करि घट है । इसलिये ताविष ताके कम वा गुण दीखते हैं। ___ अनः अन्य स्वरूप करि अघट है। जो कपालादि कुसूलांत स्वरूप करि भी घट होय तो घट अवस्था विषे भी तिनि की प्राप्ति होनी चाहिये। फिर तो उपजावने निमित्त तथा विनाशके निमित्त पुरुषका उद्यम निष्फल हो जायगा । तथा अंतरालवी पर्याय घट स्वरूप करि भी घट न होगा इस हालतमें घट करि करने योग्य फल भी न होयगा। ऐसे ये दोय भंग होते हैं अथवा क्षण क्षण प्रति द्रब्यके परिणामके उपचय अपचय भेदते अर्थान्तरपना होय है या ऋजु सूत्र नयकी अपेक्षा ते वर्तमान स्वभाव करि घट है। अतीत अनागत स्वभाव करि अघट है । ऐसे न होय तो वर्तमान की ज्यों अतीत अनागत स्वभाव करि भी घट होय ता एक समय मात्र सर्व स्वभाव होय तथा अतीत अनागतकी ज्या वर्तमान स्वभाव भी होय तो वर्तमान घट स्वभावकः अभाव होनेसे घटका आश्रय रूप व्यवहारका भी अभाव होगा जैसे विनस्या नथा नहीं उपज्या घटके घटका व्यवहार का प्रभाव है तैसे यह भी ठहरे ऐसे दोयभंग होय है अथवा तिस वर्तमान घट विषे रूपादिक का समुदाय परम्पर उपकार वारने वाला है उन विषे पृथु बुध्नोदरादि श्राकार है सो घटसा त्यामा है। अन्य सर्व परात्मा है । तिस आकारते घट है। अन्य आकार करि अघट है । घटका व्यवहार तिस ही भाकारते हैं, तिस विनः अभ व है। अत : पृथु बुध्नोदराद्याकार करि भी बढ़ न होय ते
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