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समीक्षा
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अर्थात- अर्थाकार परिणमन करने का नाम ही अर्थ विकल्प है यही झानका लक्षण है । वह ज्ञान जब एक विकल्प होता है, एक अंशको विषय करता है तब वह नयाधीन नयात्मक ज्ञानकहलाता है। तथा वही ज्ञान जब उभय विकल्प होता है अर्थात् पदार्थ के दोनों अंशों को विषय करता है तब वह प्रमाण रूप ज्ञान कहलाता है । भावार्थ-पदार्थमें सामान्य और विशेष ऐसी दो प्रकार को प्रताति होती है यह वही है ऐसी अनुगत प्रतीति को सामान्य प्रतीति कहते हैं। तथा विशेष पर्यायात्मक प्रतीतिको विशेष प्रतीति कहते हैं । सामान्य विशेष प्रतीति पदार्थ में तभी हो सकती है जब कि वह सामान्य विशेषात्मक हो । इसलिये सिद्ध होता है कि पदार्थ सामान्य विशेषात्मक है । सारांश पदार्थके सामान्य अंश को विषय करने वाला द्रव्यार्थिक नय है उसके विशेषांशको विषय करने वाला पर्यायाथिक नय है दोनों अंशों को युगपत एकसाथ विषय करने वाला प्रमाण ज्ञान है । इस कथन से यह भी अच्छी तरह सिद्ध हो गया कि निश्चय नय (द्रव्यार्थिक) पदार्थ के सामान्य अंश को विषय करता है और व्यवहार नय (पर्यायार्थिक ) पदार्थ के विशेष अंश को विषय करता है। तथा प्रमाण सामान्य विशेषको युगपत् एक साथ विषय करता है। यह सब एक ही पदार्थ के आश्रय से ही किया गया है दूसरे पदार्थ के श्राश्रय से नहीं ! इसलिये व्यवहार नय चाहे सद्भुत व्यवहार नय हो चाहे असद्भूत व्यवहार नय हो ये दोनों ही नय एक ही द्रव्य के आय ही उनके ममल बिमल गुण पर्यायों का विषय कर कथन करता है। अमद्भुत व्यवहार नय तो परनिमित्त से होने वाले पदार्थ में वैभाविक पारणमन का प्रतिपादन करता है जैसा कि अपर में कहा जाचुका है। क्रोधादिक भाव जीव के परनिमित्त से होते हैं वह वास्तविक आत्मा के स्वभाव न होने
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