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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समोक्षा ३५५ आगे गमन वे नहीं कर सकते क्योंकि कारण के अभाव में सर्य का अभाव अवश्यम्भावी होता ही है । विना निमित्त के नैमित्तिक कार्य नहीं होता यह अटल नियम है । यदि होता हो तो निमित्तों को अकिंचित कर मानने वाले सज्जन करके बतलावे अन्यथा निमित्त अकिंचितकर नहीं है ऐसा स्वीकार करें । ❤ आप जो यह कहते है कि "सामान्य नियम यह हैं कि प्रत्ये द्रव्य व स्वभाव होकर भी स्वभावसे परिणमनशील है । उससे पृथक अन्य द्रव्य उसे परिणमन करावें तब वह परिणमन करे अन्यथा वह परिणमन न करे तो परिणमन करना उसका स्वभाव नहीं ठहरेगा इसलिये जिस द्रव्यके जिस कार्यका जो उपादान क्षण है उसके प्राप्त होनेपर वह द्रव्य स्वयं परिणमन कर उस कार्य के आकार को धारण करता है यह निश्चित होता है और ऐसा निश्चित होनेपर कारकका जो क्रियाको उत्पन्न करता है वह कारक कहलाता है यह लक्षण अपने उपादानरूप मिट्टी में ही घटित होता है क्योंकि परिणमन रूप क्रिया व्यापारको मिट्टा स्वयं कर रही है कुम्भकार चक्र चीवर और पृथिवी अदि नहीं - जैन तत्र मीमांसा पृष्ठ १३३ 15 इस कथन से आप यह सिद्ध करना चाहते हैं कि प्रत्येक पदार्थ स्वयं परिणमनशील है और वे स्वयं परिणमन करते हैं, उसके परिणमन करनेमें अन्य पदार्थ सहायक नहीं माने जा सकते क्योंकि अन्य पदार्थको उसमें सहायक मानने से वह स्वयं अपरिणामी ठहरता है इसलिये उपादानमें जिस समय जो कार्य उत्पन्न होता है वह उस कार्यरूप आकार को स्वयं परिणमन करता है। जैसा कि मिट्टी स्वयं घटरूप परिणमन करती है कुम्भकारादि नही । किन्तु इस कथन से न तो निमित्त ही किचितकर सिद्ध होते है और न व्यवहार नर ही मिथ्या सिद्ध होता है क्योंकि प्रत्येक पदार्थ परिणमनशील है इसलिये वह For Private And Personal Use Only
SR No.010315
Book TitleJain Tattva Mimansa ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandmal Chudiwal
PublisherShantisagar Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year1962
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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