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जैन तत्त्व मीमांसा की
यह शक्ति अचिंत्य तुम्हारी क्या पावे पार सयाना है । ___ यह बात भी असिद्ध नहीं है। इसका कारण यह है कि वे बोतराग उनकी वीतरागता का जब हम अवलोकन करते हैं तब हमारे परणामों में वीतरागता की झलक जागृत होती है उम झलक से हमारे शुभ परिणाम होते हैं उस शुभ परणामों से पुण्य संचय होता है उस पुण्य के उदय काल में उपरोक्त चक्रबादिक की विभूतियों का संसारिक सुख प्राप्त होता है । तथा उनकी मुद्रा को देखकर उन जैसे बनने की हमारी भावना जागृत होती है और उन जैसे वनकर मोक्ष सुख प्राप्त कर लेते हैं इससे स्पष्ट हो जाता है कि हम तो लोहा के समान हैं और वे पारस के समान है अतः जिम प्रकार लोहा पारस के स्पर्श से कंचन वन जाता है उसी प्रकार हम भी उनके निमित्त से सुखी बन जाते हैं ये सब असद्भुत व्यवहार नय की अपेक्षा से कथन किया गया है असद्भुत व्यवहार नय परनिमित्त से होने वाले परिणाम की प्रगट कर कहती है । असद्भूत लय का लक्षण
अपिचाऽसद्भूतादिव्यवहारान्तोनयश्चभवतियथा । 'अन्यद्रव्यसगुणाः सञ्जायन्तेवलात्तदवन्यत्र ५२६ पंचाध्यायी ___ दूसरे द्रव्यों के गुणों का बल पूर्वक दूसरे द्रव्य में आरोपण किया जाय इसी को असद्भूत व्यवहार नय कहते हैं। दृष्टान्त "सयथावर्णादिमूर्ताद्रव्यस्य कर्मकिलमूर्तम् तत्संयो.. गत्वादिहमूर्ताः क्रोधादयोपिजीवभवाः" ५३० पंचाध्यायी ___ वर्णादि वाले मूर्त द्रव्य से कर्म बनते हैं इसीलिये वे भी मूर्त ही हैं। उन कमों के सम्बन्ध से क्रोधादि भाव बनते हैं। इसीलिये वे भी मूर्तिक हैं उनको जीव के कहना यही असद्भुत व्यवहार नय का विषय है।
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