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समाक्षा
३
विपाक उदय रूप होय स्वाद रूप होय है ते मिथ्यात्वादि अजीव हैं । ऐसे मिथ्यात्वादि भाव जीवाजीव भेद करि दोय दोय प्रकार हैं । सो याका भेद ज्ञान हुये विना जीव भावकू जीव भेद अर अजीव भावकू' अजीव जाने नाही ताते यह जीव अजीव भाव का कर्ता होय है। इस का कारण क्या है ? "उवओगस्स अणाई परिणामा तिरिण मोह जुत्तस्स। मिच्छत्तं अण्णाणं अविरदि भावो य णादबो' ।।
२१ समयप्राभूत टीका-उपयोगस्य हि स्वरस तएव समस्तवस्तु स्वभावभूतस्वरूपपरिणामसमर्थत्वे सत्यनादिवस्त्वंतरभूतमोहयुक्तत्वान्मिध्यादर्शनमज्ञानाविरतिरितित्रिविधः परिणामविकारः स तु तस्य स्फटिकस्वच्छताया इव परितोषि प्रभवन् दृष्टः । यथाहि स्फटिक स्वच्छतायाः स्वरूपपरिणामसमर्थचे सति कदाचिन्नीलहरितपीत तमाल कदली कांचन पात्रोपाश्रय युक्तत्वान्नीलो हरितः पीत इति त्रिविधः परिणाम विकारोदृष्टव्यः अथात्मनस्त्रिविधपरिणाम विकारस्य कर्तृत्वं दर्शयति" ___अर्थात्-आत्मा के उपयोग में मिथ्यादर्शन श्राज्ञान अविरति ये तीन प्रकार के परिणाम विकार अनादि कर्म के निमित्तते है। ऐसा नाहीं जो पहले शुद्ध ही था यह नवीन भया है ऐसा होय तो सिद्धनिके भी नवीन भया चाहिये सो यह है नाही ऐसे जानना । आगे आत्मा के इस तीन प्रकार के परिणाम विकार का कर्तापमा दिखावै हैं।
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